तुम्हे जिंदगी जीने का सलीका नहीं आता
रो रो कर उनको भूलने का तरीका नहीं आता।।
मुख़्तलिफ़ थी दुनियां की रवायतें कुछ
ख्वाबीदा थी एक तस्वीर उसमे नूर नहीं आता।।
वो मुन्तज़िर थे झलक को तेरी इक
अब इस तड़प का कोई अंजाम नही आता।।
सवाल -ऐ-वस्ल पर यूँहीं मुकर गए वो
मेरे रक़ीब तुझे कुछ छिपाना नहीं आता।।
मुसलसल चल रहे हैँ अंजान सी दौड़ में
मंजिलो का कोई ठिकाना नजर नहीं आता।।
रो रो कर उनको भूलने का तरीका नहीं आता।।
मुख़्तलिफ़ थी दुनियां की रवायतें कुछ
ख्वाबीदा थी एक तस्वीर उसमे नूर नहीं आता।।
वो मुन्तज़िर थे झलक को तेरी इक
अब इस तड़प का कोई अंजाम नही आता।।
सवाल -ऐ-वस्ल पर यूँहीं मुकर गए वो
मेरे रक़ीब तुझे कुछ छिपाना नहीं आता।।
मुसलसल चल रहे हैँ अंजान सी दौड़ में
मंजिलो का कोई ठिकाना नजर नहीं आता।।
मुख्तलिफ, सवाल ए वस्ल, ख्वाबीदा, रकीब, मुसलल ???????? शब्दार्थ बताये
ReplyDeleteकाबिले तारीफ अभिव्यक्ति
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