Wednesday 30 November 2016

तुम ठहर क्यों नही जाते

तुम ठहर क्यों नहीं जाते।
एक रात तुम बदल क्यों नहीं जाते।।

सुनने की मजबूरी है,
लेकिन शायद कुछ करना भी जरुरी है।
तुम कभी वो सब कह क्यों नहीं जाते,
एक शाम तुम मिल क्यों नहीं पाते।

सच का वास्ता था उम्मीदों की दहलीज़ पर,
तुम्हारा ही अक़्स था उस मुर्दा तस्वीर में।
तुम जीवन क्यों नहीं बन जाते,
एक दुपहरी तुम सो क्यों नही जाते।

रवायतें समाज की थी तकलीफ लेकिन तुमको थी,
जिंदगी से हार जाने की एक खीझ तुममें थी।
तुम क्यों नहीं सब कुछ सुन लेते,
एक जिंदगी क्यों तुम मेरे नाम नही कर जाते।