Sunday 28 August 2016

कोई खास फ़र्क़ नही आएगा

ये घटायें घनघोर सी छायी हैं
तेरे दिल को क्या मेरी कुछ याद आयी है..
आरजू तुम्हारी सदियों से थी हमको
तुमको क्या कुछ ऐसी उम्मीद नज़र आई है

संग तुम्हारे जो बिता था पल
एक कहानी बन के रग रग में है बस गया
कुछ उम्मीदों की कड़ियाँ थी
और कुछ सपनो की घड़ियाँ थीं

विचित्र स्तिथि में अब हैं हम
क्या तुमको कुछ कहना भी है
इसके आगे क्या तुमको और भी कही तक जाना है
हाँ कह कर तुम सफल मेरा जीवन कर दोगे
न भी कह दोगे तो कोई खास फ़र्क़ न आएगा