Sunday 20 December 2015

वो हिम्मती लड़की

वो लड़की जो कुछ डरी सहमी सी रहती थी.. हिम्मती नही थी....उसकी दुनिया दूसरों के इशारों पर सीमित थी.......जो कभी किसी को पलट कर जवाब नही देती थी....जो सबका कहना मानती थी....जिसके क्लास में फर्स्ट आने की बात पर भी घरवाले कान नहीं देते थे...जो  चश्मा लगाती थी तो लड़के उसको बैटरी कह के चिढ़ाते थे....किताबी कीड़ा कह के मजाक बनाते थे....जो लड़की पापा के घर आने पर तुरंत उनका खाना लगाने चल देती थी....जिसको उसका छोटा भाई भी मार के चला जाता था.....जिसका पसंदीदा गाना था "आज मै ऊपर आसमा नीचे" लेकिन वो कभी गाती नही थी..लेकिन वो लड़की कमरा बंद करके बेड पर कूद कूद के डांस करती थी

आज वो लड़की किसी बड़े शहर के एक घर के किचन में अपने हस्बैंड के लिए पराठे बना रही होगी...पूछ रही होगी और लेंगे क्या....या  अपने बच्चों के पेरेंट्स मीटिंग में बैठी होगी....शायद फिर किसी जॉब का इंटरव्यू देने जा रही होगी.....या MBA एंट्रेंस की तैयारी कर रही होगी.... या किसी कमरे में अकेले बैठी देख रही होगी अपने सुनहरे भविष्य के सपने......या होगी किसी बस में एक लड़के को चाटा मारते हुए...(किसी लड़की को छेड़ने के लिए) या होगी किसी दूकान पर  दस रूपये के लिए लड़ाई करती हुई....

उसको याद आता है कि वो उन बैटरी कहने वाले लड़को को जवाब देना चाहती थी....कि हाँ मै चश्मा लगाती हूँ क्योंकि मेरी नज़र कमजोर है  तो इससे तम्हे क्या....वो चीख चीख कर कहना चाहती थी...देखो मै फर्स्ट आई हूँ......
वो बहुत कुछ कहना चाहती थी उन रिश्तेदारों को जो उसकी higher studies के खिलाफ थे.........वो बहुत कुछ कहना चाहती थी उनलोगों से जो उसकी शादी 20 साल में ही कराना चाहते थे.....वो कहना चाहती थी जो बिटिया बड़ी हो गयी है इतनी छूट मत दो  ये कहने घर आ जाते थे......वो कहना चाहती थी उन लड़के वालों को की तम्हारे बेटे के बराबर ही मैं पढ़ी हूँ तो दहेज़ क्यों.....
वो जो लड़की हिम्मती नही थी .....वो रोज निकलती हैं इस समाज में अपनी खोयी हुई हिम्मत तलाशने...और एक बोल्ड लड़की बनने को...जिसको कोई दबा न सके..जो किसी की गलत बात सुन के जवाब देने का हौसला  रखती हो

Thursday 3 December 2015

तुम और हम


मिथ्या कहते हो मेरे वचनों को
कोई अघोषित सी बात समझते हो
तुम जो तुम हो तो क्या कोई दिखावा है
या उससे परे भी कुछ कहते हो....

जैसे तुमने थी वो बात कही 
वो तुम्हारी अभिलाषा थी
तुम्हारे उन कृत्यों से उद्वेलित
विरक्ति में आसक्ति की इक आशा थी....

अकिंचित दुःख था मेरा और तुम्हारा
क्योंकर थी  तुमने वो चेष्टा की
आज भरे बादल के सम्मुख
जिज्ञासा को जैसे स्वर मिला.......